उन्नाव। भगवान शिव का प्रसिद्ध बिल्लेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास द्वापर युग से जुड़ा हैं। इस प्राचीन मंदिर में पूजा अर्चना कर सच्चे मन से मांगी गई। भक्तों की मुराद अवश्य ही पूरी होतीं हैं।
जिला मुख्यालय से पुरवा मौरावां रोड पर मुख्यालय से 32 किमी दूर पुरवा कस्बे के पास स्थित द्वापर में महाभारतकालीन बिल्लेश्वर महादेव मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। खास बात तो यह हैं कि मंदिर परिसर में स्थापत्यकला व द्वादश ज्योतिर्लिंग के प्रतिरूप विराजमान देवाधिदेव महादेव भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करते हैं। सावन मास और शिवरात्रि में कांवड़ यात्री की उपस्थिति में महाआरती के बाद प्रसाद वितरण किया जाता हैं।
उन्नाव-मौरावां मार्ग पर जिला मुख्यालय से 32 किमी स्थित पुरवा कस्बे के पास बिल्लेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास द्वापर युग से जुड़ा माना जाता है। बिल्लेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास महाभारत से जुड़ा है। बुजुर्गों की माने तो भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं मिट्टी का शिवलिंग बनाकर यहां पर पूजन किया था। महाभारत युद्ध शुरू होने से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ राजा मौरध्वज के यहां परीक्षा लेने के लिए राज्य में गये। जो आज मौरावां नाम से जाना जाता है। यात्रा के दौरान उनका काफिला पुरवा कस्बे के बाहर एक घने जंगल में रुका सूर्य देव अस्ताचल की ओर पहुंच चुकें थे। संध्या वंदन का समय हो गया था। जिसपर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से जल की व्यवस्था करने को कहा। लेकिन जंगल में आस पास जल की व्यवस्था न होने पर अर्जुन ने धरती पर तीर चलाया जिससे जमीन से जल की तेज धरा निकली उसकी तीब्रता को रोकने के लिए धनुष रख दिया था।
बिल्लेश्वर मंदिर के सामने धनुष के आकार का बना तालाब आज उन्हीं घटनाओं का प्रमाण है। धनुष आकार का तालाब आज भी वहां विद्यमान है। यह तालाब आज भी क्षेत्रवासियों के लिए आस्था का केंद्र है। सावन माह में स्थानीय लोगों के अलावा आसपास के जनपदों से भक्त शिवलिंग का जलाभिषेक करने आते हैं।
सावन के प्रत्येक सोमवार को मंदिर परिसर में भक्तों के लिए लाइन लगाकर उन्हें भोले के दर्शन कराने की व्यवस्था की जाती है। इस मौके पर भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही पेयजल की भी व्यवस्था की जाती है। मंदिर की सफाई व्यवस्था का भी ध्यान रखा जाता है। पुलिस प्रशासन भी तैनात रहता है। बुजुर्गों के अनुसार, बिल्व पत्र की झाडिय़ों में बंजारों की गाय द्वारा दूध गिराने पर बंजारों ने शिवलिंग खोजा था। आश्चर्यजनक बात यह है कि शिवलिंग की प्रथम पूजा का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया। मान्यता यह कि अजर अमर अश्वत्थामा द्वारा शिवलिंग की प्रथम पूजा प्रातः काल की बेला में की जाती है। यही कारण है कि भक्तगण सुबह चार बजे के बाद ही मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। मंदिर के पुजारी गुड्डू गोस्वामी बाबा बताते हैं कि शिवलिंग सुबह पूजित मिलता है। मुख्य मंदिर के एक ही चबूतरे पर चारों ओर अर्धचंद्राकार रचना में एक दर्जन मंदिर बने हुए हैं। मुख्य मंदिर के सामने धनुषाकार सरोवर में कमल के पुष्पों की छटा बड़ी ही दर्शनीय रहती है। तालाब को पाप को हरने वाला कुंड कहा जाता है। जिसमे तीन तरफ पक्की सीढिय़ां बनी हुई हैं। यहां आने वाले भक्त सरोवर में स्नान करना नहीं भूलते हैं। सरोवर के बीच में मंदिर व तीर आकार का एक पुल बना है।