मैंने दरवाजा खोल दिया है: जस्टिस फातिमा बीवी
सीबीगंज (बरेली)। 80 के दशक के समाप्त होने से पहले देश में एक ऐसा मुकाम महिलाओं को प्राप्त हो चुका था जिसके बाद महिलाओं की क्षमताओं को पुरुषों के बराबर माना जाने लगा। क्योंकि इस दशक में देश के सर्वोच्य न्यायालय में महिला न्यायमूर्ति की नियुकि के दरबाजे खुल गए।
30 अप्रैल 1927 को जन्मी फातिमा बीबी ने 6 अक्टूबर, 1989 को भारत के सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला जज बनकर इतिहास रचा । यह बहुत बड़ी बात थी क्योंकि इससे पता चला कि महिलाएं कोई भी काम कर सकती हैं, यहां तक कि वह काम भी, जो आमतौर पर पुरुष करते हैं। उनकी नियुक्ति ने अन्य महिलाओं के लिए दरवाजे खोल दिए जो कानून के क्षेत्र में काम करना चाहती थीं। वैसे उनका पूरा नाम मीरा साहिब फातिमा बीबी है।
शुक्रवार को सीबीगंज क्षेत्र में इनर व्हील क्लब ऑफ ग्लोरी प्लस की चार्टर प्रेसिडेंट डॉ मधु गुप्ता ने न्यायमूर्ति फातिमा बीबी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा की महिलाओं के लिए ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां पर वह अपनी प्रतिभा दिखा न सकती हों आज के समय में हर क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का जज्बा रखती हैं । डॉ मधु गुप्ता ने कहा न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने वाली पहली महिला के रूप में भारत के इतिहास में एक विशेष स्थान रखती हैं । 1989 में उनकी नियुक्ति एक अभूतपूर्व क्षण था जिसने देश की सर्वोच्च अदालत में महिलाओं के लिए दरवाजे खोल दिए।
इस उपलब्धि से उन्होंने कई लोगों को प्रेरित किया और दिखाया कि महिला कानून और न्याय सहित सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल कर सकती है। वहीं बेसिक शिक्षा परिषद के पूर्व माध्यमिक विद्यालय जोगीठेर की सहायक अध्यापक नीलम सक्सेना ने कक्षा में छात्राओं को फातिमा बीवी के संघर्ष से लक्ष्य की प्राप्ति तक की कहानी को विस्तार से समझाया और छात्राओं से उनके बताएं मार्ग पर चलने को प्रेरित किया ।
नीलम सक्सेना ने कहा फातिमा बीवी अपनी कानून की कक्षा में केवल पाँच लड़कियों में से एक थी लेकिन इस बात ने उन्हे नही रोका। 1950 में अपनी कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने उस समय की बार काउंसिल परीक्षा जैसी बड़ी परीक्षा दी । वह न सिर्फ पास हुईं बल्कि सबसे ज्यादा अंक पाने वाली पहली महिला भी बनीं। इस उपलब्धि के लिए उन्हें विशेष पदक भी दिया गया फातिमा बीवी की विरासत में उनके व्यावहारिक निर्णय भी शामिल हैं। 1997-2001 तक उन्होंने तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में कार्य किया केरल की एक युवा महिला से भारतीय कानूनी प्रणाली में अग्रणी बनने तक फातिमा बीवी की उल्लेखनीय यात्रा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी । न्याय के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, उनकी अग्रणी भावना और लैंगिक समानता के लिए उनकी वकालत ने भारत के कानूनी परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है।
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