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Thursday, December 26, 2024
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बदायूं से धर्मेंद्र और आंवला से आबिद रजा हो सकते हैं सपा के प्रत्याशी

लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे दोनों नेता, सपा फिर बदायूं को बनाना चाहती है अपना गढ़—-स्थानीय निकाय चुनाव से उत्साहित हैं सपा के नेता, जिले समाजवादी पार्टी के हैं तीन विधायक


Badaun News: वैसे तो सपा, भाजपा, कांग्रेस और बसपा समेत सभी प्रमुख राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं। मगर जिले में नगर निकाय चुनाव परिणाम आने के बाद से सपा नेताओं में लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ ज्यादा उत्साह है।

बदायूं समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है। इसलिए सपा बदायूं लोकसभा की खोयी हुई अपनी सीट वापस लेने की कोशिश में है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की डॉ.संघमित्रा मौर्य ने सपा के किले को ध्वस्त करके सपा मुखिया अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को हराया था। मगर उनके कार्यकाल कराए गए विकास कार्यों को लोग अब भी याद करते हैं। इसलिए सपा धर्मेंद्र यादव को फिर लोकसभा चुनाव में बदायूं से प्रत्याशी बनाए की तैयारी में है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक धर्मेंद्र यादव ने चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी हैं। रोहिलखंड में अपनी जमीन को मजबूत करने के लिए समाजवादी पार्टी मुस्लिमों के कद्दावर नेताओं में शुमार रखने वाले पूर्व राज्यमंत्री आबिद रजा को आंवला लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाने के मूड हैं। सूत्रों के मुताबिक सपा नेताओं का मानना है कि नगर निकाय चुनाव के बाद से आबिद रजा की छबि सेक्युलर नेता के रूप में बनकर उभरी है। इसलिए आबिद रजा के प्रत्याशी बनने पर आंवला और बदायूं दोनों सीटों पर सपा को फायदा मिल सकता है।

केंद्र और प्रदेश में भाजपा की डबल इंजन की भाजपा सरकार है। लगातार दूसरी बार मोदी और योगी के नेतृत्व में भाजपा की सरकारें मजबूती के साथ चल रही हैं। उत्तर प्रदेश में विपक्षियों के पास लोकसभा की गिनी चुनी सीटें हैं। आने वाले लोकसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल भाजपा को शिकस्त देने के लिए चक्रव्यूह रचना तैयार करने में जुटे हैं। समाजवादी पार्टी बरेली मंडल में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस लाने के लिए हर संभव कोशिश करने में जुटी हुई है। सपा के रणनीतिकारों ने आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए जो प्लान तैयार किया है उसके अनुसार इस बात की चर्चा राजनीतिक गलियारों में अधिक है कि सपा बदायूं लोकसभा सीट पर फिर से पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतार सकती है। इसकी मुख्य वजह यह है कि सपा के परंपरागत यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बदायूं लोकसभा में ज्यादा है। यह दीगर बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की डॉ. संघमित्रा मौर्य ने धर्मेंद्र यादव को करारी मात दी थी। उस समय पूरे प्रदेश में मोदी की जबरदस्त लहर थी। पिछले परिणामों से सपा सहित सभी प्रमुख पार्टियों ने सबक भी लिया है।

समाजवादी पार्टी आने वाले लोकसभा चुनाव में किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसीलिए सपा के शीर्ष नेताओं ने धर्मेंद्र यादव को बदायूं से प्रत्याशी बनाने का पूरी तरह मल बना लिया है। खास बात यह है कि धर्मेंद्र यादव सपा मुखिया अखिलेश यादव के छोटे भाई हैं। धर्मेंद्र यादव बदायूं की राजनीति को अच्छी तरह से समझते हैं और मतदाताओं में पकड़ भी रखते हैं। सपा के शीर्ष नेता मानते हैं कि बदायूं की सीट आसानी से हासिल की जा सकती है, लेकिन यह धर्मेंद्र यादव के चुनाव लड़ने पर ही संभव है।

बदायूं से सटे आंवला (बरेली) लोकसभा सीट पर पूर्व राज्यमंत्री और बदायूं के पूर्व विधायक आबिद रजा पर समाजवादी पार्टी दांव खेल सकती है। आंवला लोकसभा क्षेत्र में भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या खासी है। आबिद रजा मुस्लिमों के बड़े नेता माने जाते हैं। उनकी पत्नी फात्मा रजा के नगर पालिका बदायूं अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने के बाद आबिद रजा पर सपा का भरोसा और बढ़ा है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक शीर्ष नेताओं से संकेत मिलने के बाद आबिद रजा ने आंवला से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि अभी वह सपा के आंवला लोकसभा प्रभारी है। आबिद रजा लगातार आंवला लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कस्बों में पार्टी के नेताओं से मिलजुल रहे हैं और मतदाताओं की नब्ज टटोल रहे हैं।

दरअसल हाल में हुए निकाय चुनाव में आबिद रजा की पत्नी फात्मा रजा ने बदायूं नगर पालिका सीट पर भाजपा प्रत्याशी दीपमाला गोयल को अच्छे खासे मतों से पराजित किया। इस सीट पर जीत हासिल करने के बाद से आबिद रजा का कद पार्टी में काफी बढ़ गया है। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बदायूं में तीन सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि इतनी ही सीटें भाजपा ने जीतीं। विधानसभा की तीन सीटें जीतने के बाद से सपा कार्यकर्ताओं और पार्टी के नेताओं को यह लगने लगा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में यदि पार्टी अच्छे से चुनाव लड़ती है तो पार्टी के प्रत्याशी जीत हासिल कर सकते हैं। एक बात यह भी है कि कई दशक से बदायूं में स्थानीय व्यक्ति चुनाव जीतने में सफल नहीं रहे हैं।

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