प्रेमचंद की रचनाओं में झलकती है सामाजिक समस्याएं और आम आदमी का दर्द: प्रोफेसर इर्तज़ा करीम
उर्दू विभाग की षट्मासिक पत्रिका “हमारी आवाज़” के नए अंक का विमोचन
लोकतंत्र भास्कर
मेरठ। प्रेमचंद न केवल एक प्रगतिशील कथा लेखक हैं, बल्कि उनकी रचनाएँ उत्तर आधुनिकतावाद के लिए भी प्रासंगिक हैं। यह आवश्यक है कि पाठकों और आलोचकों को प्रेमचंद की रचनाओं को फिर से पढ़ना चाहिए, क्योंकि हम इसे केवल अपने युग तक ही सीमित नहीं कर सकते, बल्कि हर रचनाकार के दायरे को सीमित नहीं कर सकते। ये सृजन भी भविष्य का प्रतिबिंब है। ये शब्द थे वर्तमान युग के प्रसिद्ध आलोचक और शोधकर्ता प्रो. इर्तज़ा करीम के, जो उर्दू विभाग, जनवादी लेखक संघ और वी कमिट द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किए गए थे “वर्तमान साहित्य और प्रेमचंद” नामक कार्यक्रम और विभाग की षट्मासिक पत्रिका “हमारी आवाज़” के नवीनतम अंक के लोकार्पण के अवसर पर बोल रहे थे। उनके आलोचनात्मक लेखन को लेकर बहुत कम चर्चा होती है। यह भी सच है कि प्रेमचंद की रचनाओं में सामाजिक समस्याएं और आम आदमी की पीड़ा झलकती है।
इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर इर्तजा करीम ने की प्रो. प्रज्ञा पाठक, प्रो.ललिता यादव (एनएस कॉलेज, मेरठ) और डॉ. विद्यासागर (हिंदी विभाग) ने भाग लिया। स्वागत भाषण डॉ. शादाब अलीम ने , परिचयात्मक भाषण डॉ. इरशाद स्यानवी ने, डॉ. आसिफ अली ने पत्रिका परिचय, डॉ. अलका वशिष्ठ ने संचालन और अतुल सक्सेना ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर अपनी बात व्यक्त करते हुए प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि प्रेमचंद का प्रभाव हर युग के कथा लेखकों में देखा जा सकता है, चाहे वह उपन्यास हो या कथा साहित्य पहले जिसे किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, हर गुजरते दिन के साथ उनकी कथा साहित्य की लोकप्रियता बढ़ती जाएगी। डॉ. विद्यासागर ने कहा कि प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में उभरती पूंजीवादी और सामंती व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई। उनके कथा साहित्य में किसानों, मजदूरों और गरीबों की आवाज विशेष रूप से सुनाई देती है। उन्होंने सामंती व्यवस्था पर प्रहार किया और सामाजिक बुराइयों को अपनी रचनाओं में सशक्त तरीके से उजागर किया। वस्तुतः वे जीवन के कथाकार हैं, जिनकी रचनाएँ जीवनदायी हैं।
प्रो. प्रज्ञा पाठक ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे कथाकार हैं जिनका महत्व हर युग में रहा है और भविष्य में भी रहेगा. उनकी सभी रचनाओं में, चाहे वह उपन्यास हो या लघु कथाएँ, समाज की समस्याओं, मानवीय भावनाओं और विचारों तथा वर्तमान समय की जटिल समस्याओं को आसानी से पाया जा सकता है। जो कला हम प्रेमचंद की रचनाओं में देखते हैं, उसी कला का प्रभाव हम प्रेमचंद के बाद के अन्य कथा लेखकों में देखते हैं।
प्रोफेसर ललिता यादव ने कहा कि प्रेमचंद के उपन्यासों और उपन्यासों के पात्र हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि जो सत्य है वही सुंदर है। मुंशी प्रेमचंद के यहां मानवीय चेतना, सामाजिक समस्याएं और पीड़ा का एक अनूठा पहलू देखने को मिलता है उनके कार्यों में आम आदमी झलकता है। उनके उपन्यास हों या कहानियाँ, वे हमें समाज का सच्चा दर्पण दिखाते हैं, उन्होंने मानवता की मृत देह की जड़ों को सींचने का काम किया है।
जनवादी लेखक संघ के सचिव प्रसिद्ध अधिवक्ता मुनेश त्यागी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कई बातें कलात्मक कौशल और बेहतरीन शैली को दर्शाती हैं। इस अवसर पर शोध छात्रा सैयदा मरियम इलाही ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी “कौम का खादिम” का पाठ किया। इस दौरान विभाग की पत्रिका ‘हमारी आवाज़’ के नवीन अंक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। डॉ. प्रवीन कटारिया, डॉ जयवीर सिंह, डॉ महीपाल सिंह, आफाक अहमद खान, इंजीनियर रिफत जमाली, शकील सैफी, शहनाज परवीन, उज्मा सहर, शाहे जमन, शौर्य जैन, मुहम्मद शमशाद, सईद अहमद सहारनपुरी, नुजहत अख्तर, फरहत अख्तर और बड़ी संख्या में शहर में बड़ी संख्या में गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
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