जीवन शैली बदली तो बढ़ गई बीमारियां: डा. बीएस जौहरी
जीवन शैली बदली तो बढ़ गई बीमारियां: डा. बीएस जौहरी
-आशा की किरण का 26वां कैंप आगामी 4 अगस्त को
सूरज देव प्रसाद
मेरठ। आदिकाल से मनुष्य की विकास यात्रा में बीमारियां प्रारंभ से नहीं थीं। जैसे-जैसे मनुष्य विकास करते हुए प्रकृति से न केवल दूर हुआ, बल्कि उसके विरूद्ध खड़ा हो गया, उसकी आवश्यकताएं लालसा में बदल गई, तभी से मनुष्य नाना भांति की बीमारियों से ग्रसित होने लगा।
सम्यक सोच और ज्ञान के अभाव में बीमारियों ने विकराल रूप धारण किया और यह गर्भस्थ शिशुओं तक पहुंच गई। जन्मजात बच्चे ऑटिज्म, सेरिब्रल पालसी, डाउन सिंड्रोम मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, मंद बुद्धि इत्यादि रोगों से ग्रसित होने लगे। आज इन बीमारियों के बारे में कितने लोग जानते हैं। शायद जब तक इससे किसी का पाला न पड़ा हो इस प्रकार के मरीजों और उसके परिजनों की तकलीफों को कोई महसूस ही नहीं करता। कोई नहीं जानता कि कल किसके घर में कोई बच्चा ऑटिज्म, सेरिब्रल पालसी, डाउन सिंड्रोम जैसी जन्मजात बीमारियों से ग्रसित हो कर पैदा ले। इसलिए इससे बचाव के लिए कहीं न कहीं इसके बारे में गहराई से जानकारी होना बहुत आवश्यक है। फिर यह क्यों होता है या इसके होने की क्या संभावनाएं हो सकती है, इसे होने से रोकने के क्या उपाय हैं, इसकी जानकारी भी सभी को होनी चाहिए।
क्यों बढ़ रही है यह बीमारी?
दिल्ली के जाने-माने होम्योपैथी चिकित्सक डॉ. बी.एस.जोहरी गत 20 वर्षों से इस प्रकार की बीमारियों के कारण और निदान पर कार्य कर रहे हैं। इस बारे में उनका कहना है कि हमारी जीवन शैली बदल गई है। हम गर्भस्थ शिशु और माता का ध्यान रखना बंद कर दिए हैं। लोभ, ईर्ष्या, प्रारब्ध से अधिक की अपेक्षाओं ने हमारी सोच को प्रभावित किया है। इससे उत्पन्न विकार ही बीमारियों के कारण बन रहे हैं। वह मानते हैं कि इस प्रकार की बीमारियों का कारगर इलाज होम्योपथ में है।
जीवन को समझना जरूरी
उनका कहना है कि बीमारियों से बचना है तो जीवन को समझना होगा। हज़ारों वर्षों से भारतीय मनीषा हमें इस मानव जीवन के महत्व व जीवेत शरद शतम के सिद्धांत को प्रतिपादित करती रही है। आज से 30 साल पहले खाँसी, ज़ुकाम, बुखार के मरीज़ आते थे। फिर एक दौर आया अस्थमा का। गत 10-15 वर्षों में डाइअबीटीज, कैंसर, गुर्दे, जोड़ो के रोगों की भरमार रही। अब नया दौर सेरिब्रल पाल्सी या मूक-बधिर, डाउन सिंड्रोम, ऑटिज्म, मंद बु़द्धि आदि अनेक जन्मजात बीमारियों का चल रहा है।
जन्मजात बीमारियों के लिए आशा की किरण
सही मायने में एक ऐसी किरण जो निराश मरीजों और तिमारदारों, परिजनों में आशा की संचार करती है। कैंप में आने वाले मरीज इस बात के गवाह हैं कि आशा की किरण मरीजों के जीवन में रोशनी लाई है। यह दूसरी बात है कि इसे पूर्ण सफलता उस दिन मिलेगी, जब इस प्रकार की बीमारियों का इलाज देश के हर अस्पतालों में निःशुल्क होगी। फिर इस बीमारी के होने से रोकने के लिए लोगों में जागरूकता का होना अति आवश्यक है।
शाहदरा में लगेगा त्रैमासिक कैंप
आशा की किरण दिल्ली स्थित नवीन शाहदरा में लगने वाला एक निःशुल्क त्रैमासिक कैंप है जिसमें इस प्रकार के बच्चों का इलाज गत 2016 से अनवरत चल रहा है। मरीजों से प्राप्त फीडबैक आंकड़ों से पता चलता है कि यहां आने वाले 60 प्रतिशत मरीजों पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कई मरीजों ने स्वीकार किया कि निरंतर इलाज करवाने से मरीज में 60 प्रतिशत तक सुधार हुआ है। कई केस में यह सौ फीसदी भी है।
इनका योगदान अतुलनीय
आशा की किरण में उत्तर भारत के लगभग 50 से अधिक होम्योपैथ के दिग्गज चिकित्सकों की एक पूरी टीम सेवा भाव से काम करती है। श्री गोपाल कृष्ण अरोड़ा न्यास नवीन शाहदरा के तत्वावधान में आयोजित इस संकल्प को पूरा करने में श्रीमती आरती अरोड़ा और उनके पति का अतुलनीय योगदान है, लेकिन इस पूरे आयोजन के प्रेरणास्रोत डॉ.बीएस जोहरी हैं जो चिकित्सकों की पूरी टीम को संयोजित और निर्देशित करते हैं। डॉ. जोहरी का मानना है कि बीमारी की बहुलता के मुकाबले यह प्रयास अत्यंत छोटा है। यह तभी विस्तार पा सकता है जब इसकी जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे।
आठ सालों से टीम कर रही काम
डॉ. जोहरी गत आठ वर्षों से पूरी टीम के साथ निरंतर प्रयासरत हैं कि यह अधिक से अधिकतम लोगों तक पहुंचे। वह चाहते हैं कि इस दिशा में भारत सरकार कोई ठोस दिशा निर्देश जारी करे और सरकार के प्रयास से यह जन-जन के बीच पहुंचें। लेकिन जब तक सरकार जागती नहीं तब तक डॉ. जोहरी और उनकी टीम अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटने वाली।
2 अगस्त को करा ले पंजीकरण
आशा की किरण का 26वां कैंप आगामी 4 अगस्त 2024 को नवीन शाहदरा के श्रीराम सत्संग भवन में आयोजित होने जा रहा है। यह कैंप पूरी तरह से निःशुल्क है और रोगी 2 अगस्त तक पंजीकरण करवाकर इस कैंप का लाभ ले सकते हैं।
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