जोड़ों के चोट के लिए काफी कारगर है आर्थोस्कोपी: डा. अमित मिश्रा
जोड़ों के चोट के लिए काफी कारगर है आर्थोस्कोपी: डा. अमित मिश्रा
लोकतंत्र भास्कर
मेरठ। ग्रेटर नोएडा स्थित यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के डायरेक्टर और एचओडी (आर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट) डॉ. अमित नाथ मिश्रा ने मीडिया को जारी किए अपने बयान में बताया, सदियों में जोड़ों का दर्द अधिक सताता है, क्योंकि इन दिनों लोग आराम अधिक करते हैं और शारीरिक सक्रियता कम हो जाती है। दिन छोटे और रातें बड़ी होने से जीवनशैली बदल जाती है, खान पान की आदतें भी बदल जाती हैं। लोग व्यायाम करने से कतराते हैं, जिससे यह समस्या और गंभीर हो जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक 30 साल से अधिक उम्र की तकरीबन 20 फीसदी शहरी आबादी किसी न किसी जोड़ के दर्द से पीड़ित है। दर्द निवारक दवाइयों से इसे दबाने पर पेट में अल्सर, शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा में बढ़ोतरी, गुर्दे व लीवर खराब हो सकते है। आज नये अविष्कृत अनूठे यंत्र आर्थोस्कोपी से जोड़ के दर्द के कारण की जांच और इलाज दोनों एक साथ हो सकते हैं। आमतौर पर कोई भी इस रोग का शिकार हो सकता है, लेकिन ऑस्टियों व इयूमेटाइड आर्थराइटिस के मरीज, अस्थि संबंधी हार्मोन विकृति वाले, दुर्घटना के शिकार लोग, मोटापा ग्रस्त, आरामपरस्त, कंप्यूटर ऑपरेटर, दुपहिया चालक, खिलाड़ी, टाइप-ए व्यक्तित्व के लोग, क्लर्क दुकानदार, घरेलू एवं अनियमित महावारी की शिकार महिलाएं और बहुमंजिली इमारतों के वाशिंदे खासतौर पर युवावस्था से ही किसी न किसी जोड़ के दर्द से पीड़ित हो जाते हैं। आर्थराइटिस के मरीजों के लिए आर्थेस्कोपी वरदान साबित हो रहा है। उम्र बढ़ने के साथ अब कार्टिलेज का घिसना शुरू होता है और जोड़ में घर्षण होने लगता है तो आर्थोस्कोपी से जोड़ के अंदर कार्टिलेज को पुन: चिकता (स्मूथ) बनाया जा सकता है। इससे आर्थराइटिस का विकास रूक जाता है। कभी-कभी 40 साल के युवा में आर्थराइटिस काफी बढ़ जाने से जोड़ के अंदर कार्टिलेज के छोटे-छोटे टुकड़े पड़े होते हैं। ऐसे मरीज में उम्र कम होने की वजह से कृत्रिम जोड़ लगाना उचित नहीं होता है। उनके लिए आर्थोस्कोपी का सहारा लिया जाता है।
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