क्या आप जानते हैं कि व्रत कितने प्रकार के होते हैं ? जानने के लिए पढ़िए ये खबर
जैसा कि आप सभी व्रत यानि उपवास के बारे में जानते ही होंगे। हिंदू धर्म में उपवास का बहुत ही महत्व है। कहते हैं उपवास करने से आत्मा और शरीर दोनों ही पवित्र हो जातें हैं। और उपवास करने वाले की मनोकामना भी पूरी होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि उपवास होते कितने प्रकार के हैं। आइये जानते हैं वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा जी से—-
व्रत तीन प्रकार के होते हैं –
नित्य, नैमित्तिक और काम्य, इन भेदों से व्रत तीन प्रकार के होते हैं। जिस व्रत का आचरण सर्वदा के लिए आवश्यक है और जिसके न करने से मानव दोषी होता है वह नित्यव्रत है। सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना आदि नित्यव्रत हैं। किसी प्रकार के पातक के हो जाने पर या अन्य किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति जो व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं। जो व्रत किसी प्रकार की कामना विशेष से प्रोत्साहित होकर मानव के द्वारा संपन्न किए जाते हैं वे काम्य व्रत हैं; यथा पुत्रप्राप्ति के लिए राजा दिलीप ने जो गोव्रत किया था वह काम्य व्रत है।
पुरुषों एवं स्त्रियों के लिए पृथक् व्रतों का अनुष्ठान कहा है। कतिपय व्रत उभय के लिए सामान्य है तथा कतिपय व्रतों को दोनों मिलकर ही कर सकते हैं। श्रवण शुक्ल पूर्णिमा, हस्त या श्रवण नक्षत्र में किया जानेवाला उपाकर्म व्रत केवल पुरुषों के लिए विहित है। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को आचारणीय हरितालिक व्रत केवल स्त्रियों के लिए कहा है। एकादशी जैसा व्रत दोनों ही के लिए सामान्य रूप से विहित है। शुभ मुहूर्त में किए जानेवाले कन्यादान जैसे व्रत दंपति के द्वारा ही किए जा सकते हैं।
अलग-अलग हैं व्रत की अवधि
प्रत्येक व्रत के आचरण के लिए थोड़ा या बहुत समय निश्चित है। जैसे सत्य और अहिंसा व्रत का पालन करने का समय यावज्जीवन कहा गया है वैसे ही अन्य व्रतों के लिए भी समय निर्धारित है। महाव्रत जैसे व्रत सोलह वर्षों में पूर्ण होते हैं। वेदव्रत और ध्वजव्रत की समाप्ति बारह वर्षों में होती है। पंचमहाभूतव्रत, संतानाष्टमीव्रत, शक्रव्रत और शीलावाप्तिव्रत एक वर्ष तक किया जाता है। अरुंधती व्रत वसंत ऋतु में होता है। चैत्रमास में वत्सराधिव्रत, वैशाख मास में स्कंदषष्ठीव्रत, ज्येठ मास में निर्जला एकादशी व्रत, आषाढ़ मास में हरिशयनव्रत, श्रावण मास में उपाकर्मव्रत, भाद्रपद मास में स्त्रियों के लिए हरितालिकव्रत, आश्विन मास में नवरात्रव्रत, कार्तिक मास में गोपाष्टमीव्रत, मार्गशीर्ष मास में भैरवाष्टमीव्रत, पौष मास में मार्तंडव्रत, माघ मास में षट्तिलाव्रत और फाल्गुन मास में महाशिवरात्रिव्रत प्रमुख हैं। महालक्ष्मीव्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को प्रारंभ होकर सोलह दिनों में पूर्ण होता है। प्रत्येक संक्रांति को आचरणीय व्रतों में मेष संक्रांति को सुजन्मावाप्ति व्रत, किया जाता है। तिथि पर आश्रित रहनेवाले व्रतों में एकादशी व्रत, किया जाता है। तिथि पर आश्रित रहनेवाले व्रतों में एकादशी व्रत, वार पर आश्रित व्रतों में रविवार को सूर्यव्रत, नक्षत्रों में अश्विनी नक्षत्र में शिवव्रत, योगों में विष्कुंभ योग में धृतदानव्रत और करणों में नवकरण में विष्णुव्रत का अनुष्ठान विहित है। भक्ति और श्रद्धानुकूल चाहे जब किए जानेवाले व्रतों में सत्यनारायण व्रत प्रमुख है।
किसी भी व्रत के अनुष्ठान के लिए देश और स्थान की शुद्धि अपेक्षित है। उत्तम स्थान में किया हुआ अनुष्ठान शीघ्र तथा अच्छे फल को देनेवाला होता है। इसलिए किसी भी अनुष्ठान के प्रारंभ में संकल्प करते हुए सर्वप्रथम काल तथा देश का उच्चारण करना आवश्यक होता है। व्रतों के आचरण से देवता, ऋषि, पितृ और मानव प्रसन्न होते हैं। ये लोग प्रसन्न होकर मानव को आशीर्वांद देते हैं जिससे उसके अभिलषित मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक किए गए व्रत और उपवास के अनुष्ठान से मानव को ऐहिक तथा आमुष्मिक सुखों की प्राप्ति होती है।
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